देवउठनी एकादशी, जिसे प्रबोधिनी एकादशी भी कहा जाता है, हिंदू धर्म का एक प्रमुख पर्व है जो कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष में आता है। यह वह दिन है जब चार महीने के चातुर्मास व्रत के बाद भगवान विष्णु योग निद्रा से जागृत होते हैं और सृष्टि का संचालन फिर से अपने हाथों में लेते हैं। 2025 में यह पर्व 1 नवंबर को मनाया जाएगा, जब एकादशी तिथि प्रातः 5:41 बजे से प्रारंभ होकर 2 नवंबर को प्रातः 4:01 बजे तक रहेगी। इस दिन व्रत रखने से भक्तों को मोक्ष की प्राप्ति होती है और सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।
यह पर्व न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि सामाजिक रूप से भी। चातुर्मास के समापन के साथ विवाह और अन्य शुभ कार्यों का आरंभ होता है, जिसे 'देवउठनी' कहते हैं। कथा के अनुसार, भगवान विष्णु क्षीरसागर में शयन करते हैं और इस दिन तुलसी विवाह भी संपन्न होता है। व्रत विधि सरल है: स्नान, पूजा, दान और पारण। फलाहारी भोजन या निराहार व्रत रखा जाता है। इस पर्व से जीवन में सुख-समृद्धि आती है। आइए, इस पावन अवसर पर भगवान का स्मरण करें और उनके प्रति भक्ति भाव जागृत करें। यह टैगलाइन आपको पर्व की झलक देती है, जहां आस्था और परंपरा का संगम होता है।
देवउठनी एकादशी का परिचय: एक पावन जागरण का पर्व
हिंदू पंचांग में एकादशी व्रतों का विशेष महत्व है, और इनमें से एक है देवउठनी एकादशी। यह कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है। नाम से ही स्पष्ट है कि 'देवउठनी' का अर्थ है देवताओं का जागना। वास्तव में, यह वह दिन है जब भगवान विष्णु चार मास की योग निद्रा से जागृत होते हैं। चातुर्मास के दौरान भगवान विष्णु क्षीरसागर में शयन अवस्था में रहते हैं, और इस एकादशी पर वे प्रबुद्ध होकर सृष्टि के पालन का दायित्व फिर से संभालते हैं। 2025 में यह पर्व शनिवार, 1 नवंबर को मनाया जाएगा। एकादशी तिथि 1 नवंबर को सुबह 5:41 बजे से शुरू होकर 2 नवंबर को सुबह 4:01 बजे तक चलेगी। पारण का समय 2 नवंबर को दोपहर 1:10 बजे से 3:48 बजे तक है।
यह पर्व न केवल धार्मिक, बल्कि सांस्कृतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। चातुर्मास समाप्ति के साथ विवाह, मुंज, नामकरण जैसे शुभ कार्यों का आरंभ होता है। प्राचीन काल से ही इस दिन तुलसी पूजा और विवाह का विशेष प्रचलन है। आधुनिक समय में भी लोग इस अवसर पर घरों को सजाते हैं, मंदिरों में भजन-कीर्तन करते हैं। देवउठनी एकादशी पर व्रत रखने वाले भक्तों को स्वर्ग लोक की प्राप्ति का वरदान मिलता है। पद्म पुराण में वर्णित है कि इस व्रत से इच्छापूर्ति होती है।
देवउठनी एकादशी 2025 की सटीक तिथि और मुहूर्त
2025 के पंचांग के अनुसार, देवउठनी एकादशी का मुख्य व्रत 1 नवंबर को है। कुछ परंपराओं में 2 नवंबर को गौणा एकादशी मानी जाती है, लेकिन अधिकांश विद्वान प्रथम तिथि को ही उपयुक्त मानते हैं। तिथि प्रारंभ: 1 नवंबर सुबह 5:41 बजे। तिथि समाप्ति: 2 नवंबर सुबह 4:01 बजे। अभिजीत मुहूर्त: दोपहर 11:48 बजे से 12:36 बजे तक। पारण समय: 2 नवंबर को सुबह 9:25 बजे हरि वासर समाप्ति के बाद। यदि दो दिवसीय व्रत रखा जाए, तो स्मार्त परंपरा में पहला दिन परिवार के साथ और संन्यासी द्वितीय दिन रखते हैं।
इस वर्ष चंद्रमा की स्थिति के कारण तिथि में थोड़ा विवाद रहा, लेकिन द्रिक पंचांग के अनुसार 1 नवंबर ही शुभ है। ज्योतिषीय दृष्टि से शनि का प्रभाव होने से व्रत अधिक फलदायी होगा।
देवउठनी एकादशी का धार्मिक महत्व
देवउठनी एकादशी का महत्व असीम है। यह भगवान विष्णु के प्रबोधन का प्रतीक है। स्कंद पुराण और विष्णु पुराण में वर्णित है कि चातुर्मास में भगवान विष्णु योग निद्रा में लीन रहते हैं, जिससे प्रकृति में शांति छा जाती है। इस दिन उनका जागरण सृष्टि को नई ऊर्जा प्रदान करता है। व्रत रखने से पितृ दोष नष्ट होता है, और भक्त को वैकुंठ प्राप्ति मिलती है।
सामाजिक रूप से, यह विवाह ऋतु की शुरुआत है। प्राचीन काल में राजा-महाराजा इस दिन से शुभ कार्य आरंभ करते थे। आज भी लाखों जोड़े इस अवसर पर विवाह रचाते हैं। तुलसी विवाह इस दिन विशेष होता है, जो गृहस्थ जीवन की नींव रखता है। पर्यावरणीय दृष्टि से भी महत्वपूर्ण, क्योंकि तुलसी पूजा से वायु शुद्धि होती है।
देवउठनी एकादशी की कथा: एक प्रेरणादायक प्रसंग
एकादशी व्रतों की कथाएं मनोरंजक और उपदेशपूर्ण होती हैं। देवउठनी एकादशी की कथा पद्म पुराण से ली गई है। कथा के अनुसार, एक ब्राह्मण राजा के पास एक गरीब ब्राह्मण रहता था। वह भगवान विष्णु का परम भक्त था। चातुर्मास में वह व्रत रखता और एकादशी पर जागृत विष्णु की पूजा करता। एक वर्ष राजा ने उसे देखा और पूछा, "तुम इतने गरीब होकर भी इतना कठोर व्रत कैसे रखते हो?" ब्राह्मण ने कहा, "हे राजन, यह व्रत भगवान का आशीर्वाद है।
राजा ने स्वयं व्रत रखा, लेकिन अज्ञानवश पारण समय से पहले भोजन कर लिया। परिणामस्वरूप, उसे नरक लोक प्राप्त हुआ। मृत्यु के बाद विष्णु लोक में जाकर उसने प्रायश्चित पूछा। भगवान ने कहा, "तुम्हें देवउठनी एकादशी का व्रत रखना चाहिए।" राजा ने ऐसा किया, और उसे मुक्ति मिली। इस कथा से सीख मिलती है कि व्रत की शुद्धता आवश्यक है।
एक अन्य कथा में, एक दंपति की कहानी है जो संतान प्राप्ति के लिए इस व्रत को रखता है। उनकी भक्ति से विष्णु प्रसन्न होते हैं और वरदान देते हैं। ये कथाएं भक्ति भाव जगाती हैं।
व्रत विधि: सरल और प्रभावी तरीका
देवउठनी एकादशी का व्रत सरल है, लेकिन विधि पूर्ण करनी चाहिए। प्रातः काल स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। तत्पश्चात भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। पूजा सामग्री: तुलसी पत्र, फूल, चंदन, धूप, दीप, नैवेद्य (फलाहार)।
- संकल्प: "मैं कार्तिक शुक्ल एकादशी का व्रत रखूंगा।"
- पूजा: विष्णु सहस्रनाम पाठ, भजन। तुलसी को पीले वस्त्र ओढ़ाकर विवाह करें।
- भोजन: फलाहारी - साबुदाना खिचड़ी, आलू की सब्जी, दूध। निराहार व्रत भी संभव।
- पारण: द्वादशी तिथि में, हरि वासर के बाद। दान: ब्राह्मण को भोजन, वस्त्र।
महिलाएं विशेष रूप से तुलसी माला धारण करें। व्रत टूट जाए तो प्रायश्चित: विष्णु अभिषेक, गौ दान।
पूजा मुहूर्त और शुभ समय 2025
- अभिजीत मुहूर्त: 11:48 AM - 12:36 PM
- अमृत काल: 4:20 PM - 6:00 PM
- तुलसी विवाह मुहूर्त: सायं 6:00 बजे के बाद
- दान समय: सूर्यास्त से पहले
देवउठनी एकादशी के लाभ और फल
इस व्रत से स्वास्थ्य लाभ: उपवास से detoxification। मानसिक शांति, तनाव मुक्ति। धार्मिक फल: पाप नाश, मोक्ष। आर्थिक: समृद्धि। वैज्ञानिक दृष्टि: मौसमी फलाहार से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।
आधुनिक संदर्भ में देवउठनी एकादशी
आज के व्यस्त जीवन में यह पर्व तनाव मुक्ति का माध्यम है। ऑनलाइन पूजा, लाइव भजन से युवा जुड़ रहे हैं। पर्यावरण संरक्षण के लिए तुलसी लगाना प्रोत्साहित करें।
देवउठनी एकादशी भक्ति और उत्सव का संगम है। 2025 में 1 नवंबर को इसे मनाएं, जीवन में सकारात्मकता लाएं। भगवान विष्णु की कृपा सदा बनी रहे।
Disclaimer: यह सामग्री सूचनात्मक उद्देश्य से है। व्रत या पूजा से पूर्व किसी विद्वान पंडित या ज्योतिषी से परामर्श लें। स्वास्थ्य संबंधी सलाह चिकित्सक से लें। कोई चिकित्सकीय दावा नहीं। तिथियां स्थान के अनुसार भिन्न हो सकती हैं।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
देवउठनी एकादशी 2025 कब है?
1 नवंबर 2025 को।
क्या 2 नवंबर को भी व्रत रखा जा सकता है?
हां, गौणा एकादशी के रूप में।
पारण का समय क्या है?
2 नवंबर को 1:10 PM से 3:48 PM तक।
व्रत में क्या खाया जा सकता है?
फल, दूध, साबुदाना, आलू।
तुलसी विवाह कब करें?
सायंकाल में।
इस व्रत का महत्व क्या है?
भगवान विष्णु का जागरण, पाप नाश।
क्या महिलाएं व्रत रख सकती हैं?
हां, विशेष लाभ।
प्रायश्चित कैसे करें यदि व्रत टूटे?
विष्णु पूजा और दान।
विवाह क्यों इस दिन से शुरू होते हैं?
देव जागरण से शुभ।
कथा कौन सी पढ़ें?
पद्म पुराण की ब्राह्मण कथा।
दान क्या करें?
तुलसी, फल, वस्त्र।
बच्चे व्रत रख सकते हैं?
फलाहारी रूप में।
स्वास्थ्य लाभ क्या हैं? detoxification और शांति।
अगले वर्ष की तिथि? 2026 में 21 अक्टूबर (अनुमानित)।
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