Sidebar blog
Post Date
November,
15
2025
श्री हनुमान चालीसा
हिंदी में अनुवाद सहित
प्रारंभिक दोहे
श्री गुरु चरण सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधार।
बरनऊँ रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चार॥
बरनऊँ रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चार॥
अर्थ: "श्री गुरु महाराज के चरण कमलों की धूल से अपने मन रूपी दर्पण को साफ करके श्री रघुवीर के हनुमान यश का वर्णन करता हूँ, जो चारों फल धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को देने वाला है।"
बुद्धिहीन तनु जानहु सहित, सुमिरो पवनकुमार।
बल बुद्धि विद्या देहु मोहि, हरहु कलेस विकार॥
बल बुद्धि विद्या देहु मोहि, हरहु कलेस विकार॥
अर्थ: "हे पवन कुमार! मैं आपको सुमिरन करता हूँ। आप तो जानते ही हैं, कि मेरा शरीर और बुद्धि हनुमान है। मुझे शारीरिक बल, सद्बुद्धि एवं ज्ञान दीजिए और मेरे दुःखों व दोषों का नाश कर दीजिए।"
चालीस चौपाइयाँ
चौपाई 1
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीस तिहुं लोक उजागर॥
जय कपीस तिहुं लोक उजागर॥
अर्थ: "श्री हनुमान जी! आपकी जय हो। आपका ज्ञान और गुण सागर है। हे कपीश्वर! आपकी जय हो! तीनों लोकों, स्वर्ग लोक, भूलोक और पाताल लोक में आपकी कीर्ति है।"
चौपाई 2
राम दूत अतुलित बल धामा।
अंजनी-पुत्र पवनसुत नामा॥
अंजनी-पुत्र पवनसुत नामा॥
अर्थ: "हे पवनसुत अंजनी नंदन! आपके समान दूसरा बलवान नहीं है।"
चौपाई 3
महावीर विक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी॥
कुमति निवार सुमति के संगी॥
अर्थ: "हे महावीर बजरंग बली! आप विशेष पराक्रम वाले हैं। आप खराब बुद्धि को दूर करते हैं, और अच्छी बुद्धि वालों के सारे सहायक हैं।"
चौपाई 4
कंचन बरन बिराज सुबेसा।
कानन कुंडल कुंचित केसा॥
कानन कुंडल कुंचित केसा॥
अर्थ: "आप सुनहले रंग, सुंदर वस्त्र, कानों में कुंडल और घुंघराले बालों से सुशोभित हैं।"
चौपाई 5
हार छत्र ध्वजा विराजै।
कांधे मूंज जनेऊ साजै॥
कांधे मूंज जनेऊ साजै॥
अर्थ: "आपके हार में बज्र और ध्वजा है और कंधे पर मूंज के जनेऊ की शोभा है।"
चौपाई 6
शंकर सुवन केसरी नंदन।
तेज प्रताप महा जग वंदन॥
तेज प्रताप महा जग वंदन॥
अर्थ: "हे शंकर के अवतार! हे केसरी नंदन आपके पराक्रम और महान यश की संसार भर में वंदना होती है।"
चौपाई 7
विद्यावान गुणी अति चातुर।
राम काज करिबे को आतुर॥
राम काज करिबे को आतुर॥
अर्थ: "आप प्रकांड विद्या धन धान हैं, गुणवान और अत्यंत कार्य कुशल होकर श्री राम काज करने के लिए आतुर रहते हैं।"
चौपाई 8
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।
राम लखन सीता मन बसिया॥
राम लखन सीता मन बसिया॥
अर्थ: "आप श्री राम चरित्र सुनने में आनंद रस लेते हैं। श्री राम, सीता और लखन आपके हृदय में बसे रहते हैं।"
चौपाई 9
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा।
बिकट रूप धरि लंक जरावा॥
बिकट रूप धरि लंक जरावा॥
अर्थ: "आपने अपना बहुत छोटा रूप धारण करके सीता जी को दिखलाया और भयंकर रूप करके लंका को जलाया।"
चौपाई 10
भीम रूप धरि असुर संहारे।
रामचंद्र के काज संवारे॥
रामचंद्र के काज संवारे॥
अर्थ: "आपने भयंकर रूप धारण करके राक्षसों को मारा और श्री रामचंद्र जी के उद्देश्यों को सफल कराया।"
चौपाई 11
लाय सजीवन लखन जियाये।
श्री रघुवीर हरषि उर लाये॥
श्री रघुवीर हरषि उर लाये॥
अर्थ: "आपने संजीवनी बूटी लाकर लक्ष्मण जी को जियाये जिससे श्री रघुवीर ने हर्षित होकर आपको हृदय से लगाये।"
चौपाई 12
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई॥
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई॥
अर्थ: "श्री रामचन्द्र ने आपकी बहुत प्रशंसा की और कहा कि तुम मेरे भरत जैसे प्यारे भाई हो।"
चौपाई 13
सहस बदन तुम्हरो यश गावैं।
अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं॥
अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं॥
अर्थ: "श्री राम ने आपको यह कहकर हृदय से लगाये कि तुम्हारा यश हजार मुख से सराहनीय है।"
चौपाई 14
सनकादिक ब्रह्मादि मुनिसा।
नारद-सारद सहित अहीसा॥
नारद-सारद सहित अहीसा॥
अर्थ: "श्री सनक, श्री सनातन, श्री सनंदन, श्री सनत्कुमार आदि मुनि ब्रह्मा आदि देवता नारद जी, सरस्वती जी, शेषनाग जी सब आपका गुण गान करते हैं।"
चौपाई 15
यम कुबेर दिगपाल जहाँ ते।
कहि सकहि को कहि सके कहाँ ते॥
कहि सकहि को कहि सके कहाँ ते॥
अर्थ: "यमराज, कुबेर आदि सब दिशाओं के रक्षक, कहो विद्वान, पंडित या कोई भी आपके यश का पूर्णतः वर्णन नहीं कर सकते।"
चौपाई 16
तुम उपकार सुग्रीवहि कीन्हा।
राम मिलाये राजपद दीन्हा॥
राम मिलाये राजपद दीन्हा॥
अर्थ: "आपने सुग्रीव जी को श्रीराम से मिलाकर उपकार किया, जिसके कारण वे राजा बने।"
चौपाई 17
तुम्हरो मंत्र विभीषण माना।
लंकेश्वर भए सब जग जाना॥
लंकेश्वर भए सब जग जाना॥
अर्थ: "आपके उपदेश का विभीषण जी ने पालन किया जिससे वे लंका के राजा बने, इसे सब संसार जानता है।"
चौपाई 18
जुग सहस्र जोजन पर भानू।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥
लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥
अर्थ: "जो सूर्य इतने योजन दूरी पर है कि उस पर पहुँचने के लिए हजार युग लगें। दो हजार योजन की दूरी पर स्थित सूर्य को आपने एक मीठा फल समझकर निगल लिया।"
चौपाई 19
प्रभु मुहिं अति लघु सेवक ऊपर।
जलधि लांघि गये अचरज नहिं॥
जलधि लांघि गये अचरज नहिं॥
अर्थ: "आपने श्री रामचन्द्र जी की अंगूठी मुँह में रखकर समुद्र को लाँघ लिया, इसमें कोई आश्चर्य नहीं है।"
चौपाई 20
दुर्गम काज जगत के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥
अर्थ: "संसार में जितने भी कठिन से कठिन काम हों, वो आपकी कृपा से सहज हो जाते हैं।"
चौपाई 21
राम दुआरे तुम रखवारे।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे॥
होत न आज्ञा बिनु पैसारे॥
अर्थ: "श्री रामचन्द्र जी के द्वार के आप रखवाले हैं, जिसमें आपकी आज्ञा बिना किसी को प्रवेश नहीं मिलता अर्थात आपकी प्रसन्नता के बिना राम कृपा दुर्लभ है।"
चौपाई 22
सब सुख लहै तुम्हारी सरना।
तुम रक्षक काहु को डरना॥
तुम रक्षक काहु को डरना॥
अर्थ: "जो भी आपकी शरण में आते हैं, उन्हें सभी सुख प्राप्त होते हैं, और जब आप रक्षक हैं, तो फिर किसी का डर नहीं रहता।"
चौपाई 23
आपन तेज सम्हारो आपै।
तीनों लोक हांक ते काँपै॥
तीनों लोक हांक ते काँपै॥
अर्थ: "आपके सिवाय आपके वेग को कोई नहीं रोक सकता, आपकी गर्जना से तीनों लोक काँप जाते हैं।"
चौपाई 24
भूत पिसाच निकट नहिं आवै।
महावीर जब नाम सुनावै॥
महावीर जब नाम सुनावै॥
अर्थ: "जहाँ महावीर हनुमान जी का नाम सुनाया जाता है, वहाँ भूत, पिसाच पास भी नहीं फटक सकते।"
चौपाई 25
नासै रोग हरै सब पीरा।
जपत निरंतर हनुमत बीरा॥
जपत निरंतर हनुमत बीरा॥
अर्थ: "वीर हनुमान जी! आपका निरंतर जप करने से सब रोग चले जाते हैं, और सब पीड़ा मिट जाती है।"
चौपाई 26
संकट तें हनुमान छुडावै।
मन क्रम वचन ध्यान जो लावै॥
मन क्रम वचन ध्यान जो लावै॥
अर्थ: "हे हनुमान जी! विचार करने में, कर्म करने में और बोलने में, जिसका ध्यान आपमें रहता है, उनको सब संकटों से आप छुड़ाते हैं।"
चौपाई 27
सब पर राम तपस्वी राजा।
तिन के काज सकल तुम साजा॥
तिन के काज सकल तुम साजा॥
अर्थ: "तपस्वी राजा श्री रामचन्द्र जी सबसे श्रेष्ठ हैं, उनके सब कार्यों को आपने सहज में कर दिखाया।"
चौपाई 28
और मनोरथ जो कोई लावै।
सोई अमित जीवन फल पावै॥
सोई अमित जीवन फल पावै॥
अर्थ: "जिस पर आपकी कृपा हो, वह कोई भी अभिलाषा करे तो उसे ऐसा फल मिलता है जिसकी जीवन में कोई सीमा नहीं होती।"
चौपाई 29
चारों जुग परताप तुम्हारा।
है प्रसिद्ध जगत उजियारा॥
है प्रसिद्ध जगत उजियारा॥
अर्थ: "चारों युगों सत्युग, त्रेता, द्वापर तथा कलियुग में आपका यश फैला हुआ है, जगत में आपकी कीर्ति सर्वत्र प्रकाशमान है।"
चौपाई 30
साधु संत के तुम रखवारे।
असुर निकंदन राम दुलारे॥
असुर निकंदन राम दुलारे॥
अर्थ: "हे श्री राम के दुलारे! आप सज्जनों की रक्षा करते हैं और दुष्टों का नाश करते हैं।"
चौपाई 31
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता।
अस वर दीन जानकी माता॥
अस वर दीन जानकी माता॥
अर्थ: "आपको माता श्री जानकी से ऐसा वरदान मिला हुआ है, जिससे आप किसी को भी आठों सिद्धियाँ और नौ निधियाँ दे सकते हैं।"
चौपाई 32
राम रसायन तुम्हरे पासा।
सदा रहो रघुपति के दासा॥
सदा रहो रघुपति के दासा॥
अर्थ: "आप निरंतर श्री रघुनाथ जी की शरण में रहते हैं, जिससे आपके पास बुढ़ापा और असाध्य रोगों के नाश के लिए राम नाम औषधि है।"
चौपाई 33
तुम्हरे भजन राम को पावै।
जनम जनम के दुख बिसरावै॥
जनम जनम के दुख बिसरावै॥
अर्थ: "आपका भजन करने से श्री राम जी प्राप्त होते हैं, और जन्म-जन्मांतर के दुःख दूर होते हैं।"
चौपाई 34
अंत काल रघुबर पुर जाई।
जहाँ जन्म हरि भक्त कहाई॥
जहाँ जन्म हरि भक्त कहाई॥
अर्थ: "अंत समय श्री रघुनाथ जी के धाम को जाते हैं और यही फिर जन्म लेंगे तो भक्त कहलायेंगे।"
चौपाई 35
और देवता चित्त न धरई।
हनुमत सेई सर्व सुख करई॥
हनुमत सेई सर्व सुख करई॥
अर्थ: "हे हनुमान जी! आपकी सेवा करने से सब प्रकार के सुख मिलते हैं, फिर अन्य किसी देवता की आवश्यकता नहीं रहती।"
चौपाई 36
संकट कटै मिटै सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥
अर्थ: "हे वीर हनुमान जी! जो आपका सुमिरन करता रहता है, उसके सब संकट कट जाते हैं और सब पीड़ा मिट जाती है।"
चौपाई 37
जय जय जय हनुमान गोसाईं।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं॥
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं॥
अर्थ: "हे स्वामी हनुमान जी! आपकी जय हो, जय हो, जय हो! आप मुझपर कृपालु श्री गुरु जी के समान कृपा कीजिए।"
चौपाई 38
जो सत बार पाठ कर कोई।
छूटहि बंदि महा सुख होई॥
छूटहि बंदि महा सुख होई॥
अर्थ: "जो कोई इस हनुमान चालीसा का सौ बार पाठ करेगा वह सब बंधनों से छुट जायेगा और उसे परमानंद मिलेगा।"
चौपाई 39
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।
होय सिद्धि साखी गौरीसा॥
होय सिद्धि साखी गौरीसा॥
अर्थ: "भगवान शंकर ने यह हनुमान चालीसा लिखवाया, इसलिये वे साक्षी हैं, कि जो इसे पढ़ेगा उसे निश्चय ही सफलता प्राप्त होगी।"
चौपाई 40
तुलसीदास सदा हरि चेरा।
कीजै नाथ हृदय माहिं डेरा॥
कीजै नाथ हृदय माहिं डेरा॥
अर्थ: "हे नाथ हनुमान जी! तुलसीदास सदा ही श्री राम का दास है। इसलिये आप उसके हृदय में निवास कीजिए।"
समापन दोहा
पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुरभूप॥
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुरभूप॥
अर्थ: "हे संकट मोचन पवन कुमार! आप आनंद मंगल के स्वरूप हैं। हे देवराज! आप श्री राम, सीता जी और लक्ष्मण सहित मेरे हृदय में निवास कीजिए।"
Leave a comment