बिहार की मिट्टी में बसी एक अनुपम परंपरा है छठ पूजा, जो न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है बल्कि प्रकृति, संस्कृति और सामाजिक एकता का जीवंत उदाहरण भी। कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी से आरंभ होकर चार दिनों तक चलने वाला यह महापर्व सूर्य देव की किरणों से जीवन को रोशन करने की कामना करता है। बिहार में यह पूजा क्यों इतनी गहराई से उतरी हुई है? इसका उत्तर छिपा है प्राचीन वैदिक काल में, जब ऋग्वेद में सूर्य और उषा की आराधना का उल्लेख मिलता है। बिहार की नदियों- गंगा, कोसी, पुनपुन के तटों पर लाखों श्रद्धालु अर्घ्य चढ़ाते हैं, जो पर्यावरण संरक्षण का संदेश भी देता है। यह व्रत संयम, शुद्धता और कृतज्ञता सिखाता है। महिलाओं की अटूट निष्ठा से सजे ये घाट परिवार की सुख-समृद्धि, संतान प्राप्ति और रोगमुक्ति की प्रार्थना का केंद्र बन जाते हैं। छठ केवल पूजा नहीं, बल्कि बिहारी अस्मिता का अभिन्न अंग है, जो दिल्ली से लेकर मुंबई तक प्रवासी बिहारियों के दिलों में बस गया है। इस पर्व में लोकगीतों की मिठास, ठेकुआ की मधुरता और सूर्योदय की आभा मिलकर एक दिव्य अनुभव रचती है। आइए, इस लेख के माध्यम से छठ के रहस्यों को खोलें और समझें कि क्यों बिहार इसे अपना सबसे बड़ा त्योहार मानता है।
छठ पूजा: बिहार की आत्मा का उत्सव
बिहार, वह भूमि जहां गंगा की लहरें इतिहास की गाथाएं गुनगुनाती हैं, वहां छठ पूजा का महत्व किसी पर्वत की ऊंचाई से कम नहीं। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष में मनाया जाने वाला यह चार दिवसीय अनुष्ठान सूर्य देव और उनकी पत्नी उषा (छठी मइया) की उपासना पर केंद्रित है। लेकिन सवाल उठता है- बिहार में छठ पूजा क्यों मनाया जाता है? इसका उत्तर केवल धार्मिक मान्यताओं में नहीं, बल्कि सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और वैज्ञानिक तथ्यों में छिपा है। यह पूजा बिहारियों के लिए मात्र एक रस्म नहीं, बल्कि जीवन का दर्शन है- जहां सूर्य की ऊर्जा से प्रेरित होकर मनुष्य प्रकृति के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करता है।
बिहार में छठ की जड़ें इतनी गहरी हैं कि यह त्योहार राज्य की पहचान बन चुका है। यहां के गांव-शहर, नदियों के किनारे, हर कोने में छठ का उल्लास छा जाता है। लाखों महिलाएं, पुरुष और बच्चे व्रत रखते हैं, अर्घ्य चढ़ाते हैं। यह पर्व पर्यावरण के अनुकूल है, क्योंकि इसमें कोई प्रदूषणकारी सामग्री का उपयोग नहीं होता। सूर्य की किरणें विटामिन डी प्रदान करती हैं, जो स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है। लेकिन आइए, गहराई में उतरें और समझें कि यह पूजा बिहार की धरती से क्यों इतनी जुड़ी हुई है।
छठ पूजा का ऐतिहासिक महत्व: वैदिक काल से बिहार की मिट्टी तक
छठ पूजा का इतिहास प्राचीन वैदिक साहित्य से जुड़ा है। ऋग्वेद में सूर्य देव और उषा की स्तुति का वर्णन मिलता है, जहां इन्हें जीवनदाता और प्रकाश का स्रोत माना गया है। विद्वानों के अनुसार, यह पर्व आर्य परंपरा का हिस्सा है, जो मगध (आधुनिक बिहार) क्षेत्र में विकसित हुआ। बिहार को प्राचीन काल में मगध कहा जाता था, जहां बौद्ध और जैन धर्म के साथ-साथ वैदिक रीति-रिवाज फले-फूले।
किंवदंती है कि छठ पूजा की शुरुआत भगवान राम के वनवास से जुड़ी है। रामायण के अनुसार, जब भगवान राम और माता सीता लंका से अयोध्या लौट रहे थे, तो सीता ने कार्तिक शुक्ल षष्ठी को सूर्य देव की आराधना की, जिससे उन्हें संतान सुख प्राप्त हुआ। यह कथा बिहार के मिथिला क्षेत्र से जुड़ी है, जहां सीता का जन्म हुआ था। इसी प्रकार, महाभारत में कर्ण को भी छठ व्रत का पालन करने वाला बताया गया है। कर्ण, जो सूर्य पुत्र थे, ने इस व्रत से अपनी शक्ति प्राप्त की। ये पौराणिक कथाएं बताती हैं कि छठ की जड़ें बिहार की सांस्कृतिक विरासत में गहरी हैं।
ऐतिहासिक दृष्टि से, बिहार के भागलपुर जिले के विक्रमशिला क्षेत्र से छठ पूजा की शुरुआत मानी जाती है। यहां के प्राचीन मंदिरों में सूर्य पूजा के अवशेष मिले हैं। मध्यकाल में मुगल शासन के दौरान भी यह पर्व निर्बाध चला, क्योंकि यह लोक-आधारित था। ब्रिटिश काल में भी बिहारी किसान इसे फसल की समृद्धि के लिए मनाते रहे। आजादी के बाद, छठ ने बिहार की एकता का प्रतीक बनाया। प्रवासी बिहारियों ने इसे दिल्ली, मुंबई और विदेशों तक पहुंचाया, लेकिन इसका केंद्र हमेशा बिहार ही रहा। क्यों? क्योंकि बिहार की जलवायु और नदियां इस पूजा के लिए आदर्श हैं। गंगा के तटों पर सूर्योदय और सूर्यास्त का दृश्य दिव्यता प्रदान करता है।
बिहार में छठ क्यों विशेष: सांस्कृतिक और सामाजिक कारण
बिहार में छठ पूजा को विशेष स्थान प्राप्त है क्योंकि यह राज्य की सामाजिक संरचना से जुड़ा है। बिहार एक कृषि-प्रधान राज्य है, जहां सूर्य की किरणें फसलें उगाती हैं। छठ से पहले खरीफ की फसल कटाई होती है, इसलिए यह कृतज्ञता का पर्व है। यहां की महिलाओं में व्रत की परंपरा मजबूत है, जो परिवार की रक्षा का प्रतीक है। छठ के दौरान जाति-धर्म का भेदभाव मिट जाता है; सभी एक साथ घाट पर अर्घ्य चढ़ाते हैं।
सांस्कृतिक रूप से, बिहार के लोकगीत जैसे "देवघरिया" और "बन्ना बन्नी" छठ की शान बढ़ाते हैं। ये गीत पीढ़ियों से चले आ रहे हैं, जो प्रेम, भक्ति और प्रकृति की सुंदरता बयां करते हैं। ठेकुआ, एक प्रकार का प्रसाद, जो गुड़ और गेहूं से बनता है, छठ का अभिन्न अंग है। यह न केवल स्वादिष्ट है बल्कि ऊर्जा प्रदान करने वाला भी। बिहार के गांवों में छठ मेलों का आयोजन होता है, जहां नृत्य, संगीत और हस्तशिल्प की प्रदर्शनी लगती है। यह पर्व पर्यटन को भी बढ़ावा देता है, जैसे पटना के गांधी घाट या वैशाली के तट।
एक महत्वपूर्ण कारण है बिहार की भौगोलिक स्थिति। राज्य में 10 से अधिक प्रमुख नदियां हैं, जो छठ के लिए पवित्र घाट प्रदान करती हैं। जल प्रदूषण से मुक्त ये तट पूजा के लिए सुरक्षित हैं। इसके विपरीत, अन्य राज्यों में नदियों की कमी या शहरीकरण के कारण छठ कम प्रचलित है। बिहार सरकार भी छठ को राज्य उत्सव का दर्जा देती है, जिससे इसका महत्व बढ़ता है।
छठ पूजा की रीति-रिवाज: चार दिनों का दिव्य सफर
छठ पूजा चार दिनों में संपन्न होती है, प्रत्येक दिन का अपना महत्व है।
पहला दिन: नहाय-खाय यह व्रत का आरंभ है। श्रद्धालु स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करते हैं। केवल एक बार सात्विक भोजन ग्रहण किया जाता है- कद्दू की सब्जी, चावल और दाल। यह दिन शुद्धिकरण का प्रतीक है। बिहार के घरों में महिलाएं विशेष सफाई करती हैं, मानो घर को देवालय बना रही हों।
दूसरा दिन: खरना नहाय-खाय के अगले दिन खरना मनाया जाता है। व्रतधारी केवल एक बार भोजन करते हैं- गुड़ की रोटी और दूध। शाम को सूर्य को अर्घ्य चढ़ाया जाता है। यह दिन संयम सिखाता है। बिहार के गांवों में इस दिन ठेकुआ बनाने की तैयारी शुरू हो जाती है।
तीसरा दिन: संध्या अर्घ्य यह सबसे कठिन दिन है। व्रतधारी निर्जल उपवास रखते हैं। शाम को सूर्यास्त के समय जल में खड़े होकर अर्घ्य चढ़ाया जाता है। फल, नारियल और ठेकुआ सूर्य को समर्पित होते हैं। घाटों पर दीपमालाएं जलती हैं, जो दृश्य मनमोहक होता है। बिहार में लाखों लोग एकत्र होते हैं, जो सामूहिक ऊर्जा का प्रतीक है।
चौथा दिन: उषा अर्घ्य व्रत का समापन सूर्योदय के समय होता है। पूर्व दिशा की ओर मुख कर अर्घ्य चढ़ाया जाता है। फिर प्रसाद वितरण होता है। यह दिन विजय और समृद्धि का प्रतीक है। बिहार के घाटों पर यह दृश्य सूर्य की पहली किरणों से जगमगा उठता है।
ये रीति-रिवाज बिहार की सादगी को दर्शाते हैं। कोई पंडित या मंत्र नहीं, केवल भक्ति और प्रकृति।
छठ पूजा का धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व
धार्मिक रूप से, छठ सूर्य की सात किरणों का प्रतीक है, जो सात चक्रों को जागृत करती हैं। छठी मइया संतान और सुख की दात्री हैं। व्रत से पापों का नाश और पुण्य प्राप्ति होती है।
वैज्ञानिक दृष्टि से, सूर्य की किरणें विटामिन डी बढ़ाती हैं, जो हड्डियों और इम्यून सिस्टम के लिए लाभकारी है। कार्तिक मास में सूर्य की UV किरणें त्वचा रोगों से बचाती हैं। जल में खड़े होकर अर्घ्य चढ़ाना थायरॉइड और जोड़ों के दर्द में राहत देता है। पर्यावरणीय रूप से, यह पर्व जल संरक्षण और जैव विविधता को बढ़ावा देता है। बिहार में छठ के दौरान नदियों की सफाई अभियान चलाए जाते हैं।
छठ पूजा: बिहार की एकता और चुनौतियां
छठ बिहार की सामाजिक एकता को मजबूत करता है। प्रवासी बिहारियों के लिए यह घर वापसी का माध्यम है। लेकिन चुनौतियां भी हैं- जल प्रदूषण, भीड़भाड़ और मौसम। फिर भी, बिहारवासी इसे उत्साह से मनाते हैं।
बिहार में छठ पूजा इसलिए मनाया जाता है क्योंकि यह राज्य की आत्मा है- प्राचीन, सरल और शक्तिशाली। यह हमें सिखाता है कि जीवन सूर्य की तरह उज्ज्वल हो सकता है। आइए, इस परंपरा को संजोएं।
Disclaimer: यह लेख सूचनात्मक उद्देश्य से तैयार किया गया है और पारंपरिक मान्यताओं पर आधारित है। कोई चिकित्सकीय या धार्मिक सलाह नहीं है। व्रत या पूजा से पहले विशेषज्ञ से परामर्श लें। लेखक या प्रकाशक किसी भी दावे की जिम्मेदारी नहीं लेते।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
- छठ पूजा कब मनाई जाती है?
छठ पूजा कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी से आरंभ होकर सप्तमी तक चार दिनों तक मनाई जाती है।
- छठ पूजा का मुख्य देवता कौन है?
मुख्य देवता सूर्य देव और छठी मइया (उषा) हैं।
- बिहार में छठ क्यों विशेष रूप से मनाया जाता है?
बिहार की वैदिक परंपरा, नदियों की उपस्थिति और कृषि संस्कृति के कारण यह यहां गहराई से जुड़ा है।
- छठ पूजा के चार दिन क्या हैं?
नहाय-खाय, खरना, संध्या अर्घ्य और उषा अर्घ्य।
- क्या छठ पूजा केवल महिलाएं मनाती हैं?
नहीं, पुरुष और बच्चे भी भाग लेते हैं, लेकिन मुख्य व्रत महिलाएं रखती हैं।
- ठेकुआ क्या है?
ठेकुआ छठ का प्रसाद है, जो गुड़, गेहूं और घी से बनाया जाता है।
- छठ पूजा का वैज्ञानिक महत्व क्या है?
सूर्य की किरणें विटामिन डी प्रदान करती हैं, जो स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है।
- क्या छठ पूजा अन्य राज्यों में मनाई जाती है?
हां, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और प्रवासी बिहारियों द्वारा अन्य जगहों पर।
- छठ पूजा की शुरुआत कहां से हुई?
ऐतिहासिक रूप से बिहार के भागलपुर (विक्रमशिला) क्षेत्र से।
- रामायण में छठ का संबंध क्या है?
माता सीता ने वनवास के बाद इस व्रत से संतान प्राप्ति की कामना की।
- छठ में अर्घ्य क्यों चढ़ाया जाता है?
सूर्य देव को जल, फल और प्रसाद अर्घ्य के रूप में समर्पित किया जाता है।
- क्या छठ पूजा पर्यावरण अनुकूल है?
हां, इसमें कोई प्लास्टिक या प्रदूषक सामग्री का उपयोग नहीं होता।
- छठ के लोकगीत क्या हैं?
देवघरिया, बन्ना बन्नी जैसे गीत भक्ति और लोक संस्कृति को दर्शाते हैं।
- व्रत के दौरान क्या खाया जाता है?
सात्विक भोजन जैसे फल, दूध और गुड़ की रोटी।
- छठ पूजा से क्या लाभ मिलता है?
पारिवारिक सुख, स्वास्थ्य और समृद्धि की कामना पूरी होती है, मान्यता के अनुसार।
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